गुरुवार, 1 नवंबर 2012

सुरीली मैना और मोती (बाल कहानी)- मंजरी शुक्ला

हिमालय की घनी तराइयों के बीच में एक जंगल था जो कि चांदीपुर देश के समीप था। हरे-भरे पेड़ों और रंग-बिरंगे फूलों और लताओं से लदा यह जंगल बहुत ही खूबसूरत था। चारों और पषु-पक्षी निर्भय होकर घूमते रहते, क्योंकि वहाँ के बारे में कोई मनुष्य जानता नहीं था। उसी जंगल में एक विषाल वृक्ष पर एक छोटी सी मैना रहती थी। वह सारा दिन डालों पर फुदकती रहती और बड़े ही मीठे स्वर में गाना गाती। गाना तो वहां और भी पक्षी गाते थे, पर मैना के गाने में एक खास बात थी। जब वह गाती थी, तो उसके मुंह से एक सफेद मोती गिरता था। इसलिए उसे पेड़ के चारों ओर चमकीले मोतियों का एक ढेर इकट्ठा हो गया था। सभी पक्षी दिन भर उन मोतियों से खूब खेलते और शाम को वापस उनका ढेर लगा देते इसी तरह हंसी खुषी उनके दिन व्यतीत हो रहे थे। एक बार वहाँ का राजा चंद्रसेन शिकार खेलते हुए रास्ता भटक गया और उस जंगल में पहुँच गया जहां मैना रहती थी। सफेद और चमकीले मोतियों के ढेर को जंगल में देखकर वह अचंभित रह गया। उसने पहले कभी इतने खूबसूरत मोती नहीं देखे थे वह कुछ बोलता इससे पहले मैना ने गाना शुरू कर दिया। मैना पत्तों की ओट में थी इसलिए वह राजा को नही देख पाई थी और ना ही राजा ने उसको देखा था जैसे ही मैना ने गाना खत्म किया तो उसके मुंह से एक चमकता हुआ मोती गिर गया राजा तुरंत समझ गया कि यह किसी पक्षी के मुंह से निकल रहा है, पर पेड़ पर कई पक्षी बैठे होने की वजह से वह कुछ समझ नही पा रहा था। तभी वह मोतियों के ढेर के पास पहुँचा जहाँ पर बहुत सारे पक्षी मोतियों को चोच में दबाकर उनसे खेल रहे थे। राजा को देखते ही पक्षी डर गए और उड़कर पेड़ पर बैठ गए राजा पक्षियों की ओर देखता हुआ बोला - मुझे वह पक्षी बता दो जिसके मुंह से यह मोती निकलता है, मैं उसको अपने साथ राजमहल ले जाउंगा और सोने के पिंजरे में रखूंगा। यह सुनते ही बेचारी मैना का दिल दहल गया और उसने डर के मारे अपनी आंखे बंद कर ली। पर कोई भी पक्षी कुछ नहीं बोला और चारों तरफ बिल्कुल सन्नाटा छा गया। राजा गुस्से से बोला- ‘‘ मै तुम सभी को ले जाउंगा और पिंजरे में बंद कर दूंगा। यह सुनकर तोता डरते हुए आगे आया और मुझे अपने साथ ले चलो तभी पीछे से अपने खूबसूरत पंखों को फैलाए मोर आगे आया और बोला ‘‘ मेरे मुंह से मोती निकलता है, मुझे अपने साथ ले चलो। तोता मुझे बचाने के लिए झूठ बोल रहा है। ‘‘ फिर क्या था एक के बाद एक पक्षी आगे आकर राजा से अपने मुंह से मोती निकलने की बात कह रहे थे। अपने दोस्तों का यह प्यार देखकर मैना की आंखो से आंसू बह निकले। वह पत्तों के झुरमुट से बाहर आकर मोतियों के ढेर पर बैठ गई और बोली मेरे सभी दोस्त मुझसे बहुत प्यार करते है और वे मुझे पिंजरे में बंद नहीं देख सकते इसलिए झूठ बोल रहे है। मेरे ही मुंह से मोती निकलता है। और यह कहकर मैना गाना गाने लगी जैसे ही उसका गाना खत्म हुआ, एक चमकदार मोती तुरंत उसके मुंह से निकला मोती | यह देखकर राजा ने दौड़कर मैना को पकड़ लिया। उसने एक हाथ घोडे को दौड़ाना शुरू किया और दूसरे हाथ में मैना को कसकर पकड़ लिया कि कही वह उड़ नहीं जाऐ। पर मैना बिल्कुल चुपचाप और बिना हिले डूले बैठी हुई थी। राजा बहुत देर तक जंगल से बाहर जाने का रास्ता ढूँढ़ता रहा पर उसे इतने घने जंगल में कुछ भी सूझ नहीं रहा था। तभी मैना रूँधे स्वर में बोली - ‘‘ मैं आपको जंगल से बाहर जाने का रास्ता बताती हूँ। राजा ने मैना की तरफ देखा तो उसकी आँखों सें टप-टप आंसू गिर रहे थे। राजा उसके द्वारा बताऐ गऐ रास्ते पर जाने के कुछ ही समय के बाद जंगल के बाहर पहुँच गया राजा ने देखा कि उसकी हथेली मैना के लगातार रोने से भीग गई है और वह सिर उठाकर बार-बार आसमान की ओर देख रही है। राजा ने जब उपर देखा तो वह आष्यर्च चकित रह गया। सभी पक्षी मैना के कारण उसके पीछे उड़कर आ रहे थे। राजा का मन ग्लानि से भर गया। उसने प्यार से मैना के सिर पर हाथ फेरकर बोला - तुम अपने मित्रों से बिछुड़ने के दुख में लगातार रो रही थी, उसके बाद भी तुमने मुझे जंगल के बाहर पहुँचने का रास्ता बताया, नही तो मैं षायद कभी भी इतने घने जंगल के बाहर नहीं आ पाता और यह कहकर उसने मैना को उड़ा दिया। पक्षियों ने जैसे ही मैना को अपनी ओर आते देखा तो वे खुशी के मारे चीख पड़े और वापस जंगल की ओर लौटने लगे और राजा मुस्कराता हुआ उन्हें तब तक देखता रहा, जब तक वे आंखों से ओझल नहीं हो गए।

सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

कहानी दुष्ट कौए की/ कौशल पाण्डेय

नानी के घर आते ही सोनू और मोनू उन्हें घेर कर बैठ गये। नानी उनके इस घेराव का मतलब समझ रही थीं। “हां,हां। जानती हूं तुम्हें क्या चाहिये। कहानी भी सुनाऊंगी,पहले चाय नाश्ता तो करो”। “नानी,चाय भी पीते जायेंगे और कहानी भी सुनते रहेंगे ”-- दोनों एक साथ बोल पड़े। तभी मुंडेर पर आकर एक कौआ कांव कांव करने लगा। “नानी, लगता है इसे भी कहानी सुननी है”-- सोनू ने नमकीन के कुछ टुकड़े उस कौवे की ओर डालते हुए कहा। “नहीं, नहीं। इसे मुंह लगाने की कतई ज़रूरत नहीं है। यह तो बहुत ही दुष्ट कौआ है। इसे अपने किये की काफ़ी सज़ा मिल चुकी है। देखते नहीं इसकी चोंच में घाव का कितना बड़ा निशान है”-- नानी ने बताया। “इसके ये घाव कैसे हो गया नानी?” मोनू ने कौतुहलवश पूछा। आज मैं तुम दोनों को इसी दुष्ट कौवे की कहानी सुनाउंग़ी। पिछली बार गर्मी में जब तुम दोनों आये थे, उसके कुछ दिन बाद ही सामने वाले नीम के पेड़ पर एक घोंसले में गौरैय्या ने दो अंडे दिये। जब उन अंडों से प्यारे-प्यारे बच्चे निकले तो इस कौए की नीयत खराब हो गयी। सुबह-शाम वह यही सोचने लगा कि गौरैय्या के इन बच्चों को कैसे खाया जाये। कौआ गौरेय्या से कोई डरता तो था नहीं, अत: एक दिन गौरेय्या के घोंसले के पास वाली डाल पर जाकर बैठ गया और सीधे-सीधे बोल पड़ा- “गौरैय्या, मैं तेरे बच्चों को खाना चाहता हूं।” गौरेय्या पहले तो बहुत डरी, पर उसने हिम्मत और दिमाग से काम लिया। “ठीक है, खा लेना मेरे बच्चों को, पर यह भी तो देखो कि बच्चे कितने मुलायम हैं और तुम्हारी चोंच। न जाने कहां-कहां की गंदगी इस पर लगी हुई है। जाओ पहले तालाब में अपनी चोंच धोकर आओ।” कौए को लगा, ये तो बड़ा आसान है। वह उड़कर तालाब के किनारे पहुंचा और अपनी चोंच पानी में डालकर धोने लगा। तभी तालाब ने उसे डांट दिया-“खबरदार, जो मेरे सारे पानी को अपनी गंदी चोंच से गंदा किया। जाओ पहले कोई बर्तन ले आओ। उसमें अलग से पानी लेकर तुम अपनी चोंच धो सकते हो।” कौआ तुरंत उड़कर बर्तन के पास गया- बर्तन बर्तन, आओ आओ मेरे साथ चले तुम आओ लाऊंगा मैं तुममें पानी धोऊं अपनी चोंच खाऊं कैसे गौरेय्या को यही रहा मैं सोच। बर्तन ने कहा,“कौए भाई मैं तो चलने को तैयार हूँ, पर मेरी तली में एक छेद है। उसे चिकनी मिट्टी से भर लो, तो मैं तुम्हारे काम आ सकता हूँ”। कौआ दौड़ा दौड़ा मिट्टी के पास गया- मिट्टी मिट्टी, आओ आओ मेरे साथ चली तुम आओ बर्तन का तुम छेद भरोगी लाऊंगा मैं उसमें पानी धोऊं अपनी चोंच खाऊं कैसे गौरेय्या को यही रहा मैं सोच। मिट्टी ने चलने में तो कोई आपत्ति नहीं की, पर कहा,“इधर मैं सूखकर कड़ी हो गयी हूँ। मुझे मुलायम बनाना होगा। यह काम तो हाथी दादा ही कर सकते हैं”। कौआ दौड़ा दौड़ा हाथी दादा के पास गया- हाथी दादा, आओ आओ मेरे साथ चले तुम आओ मिट्टी को झट नरम बनाओ जो बर्तन का छेद भरेगी लाऊंगा मैं उसमें पानी धोऊं अपनी चोंच खाऊं कैसे गौरेय्या को यही रहा मैं सोच। हाथी ने पहले तो उसे बहुत डांटा, “तू ऐसी गंदी बातें क्यों सोचता रहता है। मेरी तरह घास-पात क्यों नहीं खाता है। तेरा पेट ही कितना बड़ा है”। पर वह यह भी समझ रहा था कि जाना तो उसे भी नहीं है। अत: उसने भी अपने भूखे होने की बात कह दी, “पहले जाओ, दो-चार टोकरी अच्छे आम के पत्ते ले आओ”। कौआ दौड़कर आम के पास गया- आम आम तुम आओ आओ मेरे साथ चले तुम आओ तुमको खाकर हाथी दादा पायेंगे कुछ ताकत ज्यादा वे मिट्टी को नरम करेंगे जो बर्तन का छेद भरेगी लाऊंगा मैं उसमे पानी धोऊं अपनी चोंच खाऊं कैसे गौरेय्या को यही रहा मैं सोच। आम ने कहा, “तुम तो बिल्कुल ही मूर्ख लगते हो। देखते नहीं मेरी जड़ें ज़मीन में कितनी गहराई तक गयी हैं। मेरा यहां से हिलना क्या कोई हंसी खेल है? हां, इतना ज़रूर कर सकते हो कि बढ़ई से लोहे की आरी लाकर मेरी कुछ डालें काट कर अपना काम चला लो”। कौआ दौड़ा दौड़ा बढ़ई के पास गया- बढ़ई चाचा,बढ़ई चाचा है एक बहुत ज़रूरी काम आरी ले जानी है मुझको काटूंगा मैं उससे आम उसको खाकर हाथी दादा पायेंगे कुछ ताकत ज्यादा वे मिट्टी को नरम करेंगे जो बर्तन क छेद भरेगी लाऊंगा मैं उसमें पानी धोऊं अपनी चोंच खाऊं कैसे गौरेय्या कि यही रहा मैं सोच। बढ़ई चाचा ने उसे सहर्ष आरी पकड़ा दी। कौआ मन ही मन खूब प्रसन्न हुआ। कांटे जैसे दांतों वाली आरी को चोंच में दबाकर कौए ने ऊंची उड़ान भरी। बस फ़िर क्या था। गौरेय्या के नर्म-मुलायम बच्चों के काल्पनिक स्वाद के आगे वह आरी को छोड़ नहीं पा रहा था और आरी उसकी चोंच में घाव किये जा रही थी। घाव की तकलीफ़ जब सहन नहीं हुई तो आरी उसकी चोंच से छूट गयी और वह निढाल होकर ज़मीन पर उतर आया। उसकी चोंच की ऐसी गत हो चुकी थी कि वह कुछ भी खाने लायक नहीं रहा। “देखा सोनू, तुम्हारे फ़ेंके हुए नमकीन के टुकड़े अभी भी यह ठीक से नहीं खा पा रहा है”, नानी ने कहा। “फ़िर गौरेय्या और उसके बच्चों का क्या हुआ नानी”, मोनू पूछ बैठा। “उनका क्या होगा। बच्चे भी पूरी गौरेय्या बन चुके हैं। यहीं कहीं फ़ुदक रहे होंगे।” मोनू ने एक छोटा-सा कंकड़ उठाया और कौए को मार कर भगा दिया। सोनू हाथ में नमकीन के छोटे-छोटे टुकड़े लिये गौरेय्या को खोज रहा था। कौशल पाण्डेय हिन्दी अधिकारी आकाशवाणी, शिवाजी नगर पुणे(महाराष्ट्र) मोबाईल न0:09823198116